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एक हालिया पॉडकास्ट पर बेहद निजी और भावुक बातचीत में अभिनेत्री कुब्रा सैत ने अपने जीवन के एक कम चर्चित अध्याय को साझा किया — उनके बचपन में झेली गई बदमाशी की कहानी. सेक्रेड गेम्स में अपनी दमदार परफॉर्मेंस से दर्शकों का दिल जीतने से बहुत पहले, कुब्रा एक ऐसी बच्ची थीं जो अपने नाम, अपने बालों और यहां तक कि अपनी आंखों के रंग को लेकर चिढ़ाई जाती थीं — उन चीज़ों के लिए जो उनके बस में ही नहीं थीं.
"मुझे मेरे नाम के लिए चिढ़ाया गया, मेरे बालों के लिए चिढ़ाया गया, मेरी आंखों के रंग के लिए चिढ़ाया गया," उन्होंने शांत लेकिन आत्मविश्लेषणात्मक लहजे में कहा. "और अब मैं इन्हें अपनी खूबसूरती मानती हूं. अब इनमें कोई कमी नहीं लगती. लेकिन बचपन में मुझे नहीं पता था कि इससे कैसे निपटना है. बहुत अकेलापन महसूस होता था, जैसे दुनिया से कटा हुआ हूं."
ये बदमाशी सिर्फ स्कूल के खेल-खेल में की गई मस्ती नहीं थी — इसका गहरा असर उनके आत्म-सम्मान पर पड़ा. उम्र बढ़ने के साथ ये तंज़ और भी तीखे हो गए, और अकेलापन और गहराता गया. लेकिन उनकी ज़िंदगी ने मोड़ तब लिया जब मात्र 13 साल की उम्र में उन्हें एक पर्सनैलिटी डेवलपमेंट प्रोग्राम और उसके बाद एक आत्म-विश्वास बढ़ाने वाले कोर्स में दाखिल कराया गया. ये एक अनोखा हस्तक्षेप था, लेकिन उसी ने चुपचाप उनके भीतर बदलाव की नींव रखी.
"सोचिए, 13 साल की उम्र में ऐसा कुछ झेलना… और फिर उस सीख को अपनी ज़िंदगी में पूरी तरह आत्मसात करने में 20 साल लग जाना," उन्होंने कहा. "लेकिन यही हुआ. वो सीख अंदर रह गई. उसी ने मुझे आकार दिया."
इस बदलाव की असली शुरुआत थिएटर से हुई. "मैं अपने अंदर इतनी गहराई तक गई कि कुछ खूबसूरत खोज निकाला. मुझे थिएटर मिला. भीड़ में सुकून मिला. अपनी त्वचा में आत्मविश्वास मिला." जिन चीज़ों ने कभी उन्हें 'अलग' महसूस कराया था, वही अब उनकी ताकत बन गईं. जो चीज़ें कभी उनकी आवाज़ को दबा देती थीं, वही अब उनकी पहचान बन गईं.
आज कुब्रा न सिर्फ एक बोल्ड और अनकन्वेंशनल परफॉर्मर हैं, बल्कि वह आत्मिक सच्चाई की पैरोकार भी हैं. अपनी कहानी को साझा करके वो दूसरों को भी उनकी अपनी सच्चाई स्वीकारने की राह दिखा रही हैं. उनका संदेश सीधा है, लेकिन बहुत गहरा — "जिन बातों के लिए आपको ताना दिया जाता है, वही एक दिन आपकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती हैं."
"अलग होना आपकी कमज़ोरी नहीं है, वही आपकी सुपरपावर है."
एक ऐसी दुनिया में जहां सब कुछ एक जैसे दिखने की होड़ लगी है, कुब्रा सैत इस बात की जीती-जागती मिसाल हैं कि सच्चे खुद को अपनाने में जितनी ताकत चाहिए, उतनी ही आज़ादी भी मिलती है.
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